"जब पुण्य पाप की परछाई में पनपता है"
"जब पुण्य पाप की परछाई में पनपता है" आज का समय भ्रम और छवियों का समय है। एक ऐसा दौर, जहां अच्छाई का चेहरा सजाया जाता है, और सच्चाई को दबाया जाता है। समाज में जो व्यक्ति जनसेवा का प्रतीक बनकर उभरता है, वह अक्सर हमारी भावनाओं की उस ज़मीन पर खड़ा होता है, जिसे हम बिना सवाल पूछे ही पवित्र मान लेते हैं। पर क्या कभी आपने उस सिंहासन को गौर से देखा है, जिस पर यह मसीहा बैठा है? वह सिंहासन अक्सर लाचारों की खामोशियों, शोषितों की आहों और अनगिनत कुर्बानियों की नींव पर खड़ा होता है। पुण्य का कार्य दिखाने के लिए, पाप की चुप्पी को साध लिया जाता है। मीडिया में तस्वीरें मुस्कुराती हैं, पर ज़मीर कहीं पीछे दम तोड़ रहा होता है। समाज में ‘मसीहा’ बनना अब सेवा नहीं, एक रणनीति बन गया है। प्रचार, सत्ता और छवि निर्माण का मिश्रण ही आजकल किसी को महान बना देता है। मगर इन सबके पीछे एक अंधकार है — जिसे देखना जरूरी है। हमें ज़रूरत है इस नकाब को हटाने की। हमें चाहिए कि हम सिर्फ कार्य नहीं, उसकी नीयत को भी परखें। क्योंकि अगर पुण्य, पाप की परछाई में पनपने लगे — तो सच को उजागर करना हमारा कर्तव्य बन ज...