"विरासत बनाम विकास: क्या भारत की सांस्कृतिक जागरूकता नई दिशा में जा रही है?"
#विरासत_की_पुनर्स्थापना_का_दौर..
सच को समझने का यही समय है, सही समय है...
कुछ देशवासियों को इस बात से चिढ़ है कि
देश का माहौल इतना धार्मिक क्यूँ होता जा रहा है ?
शिकायत यह है कि यह सब
पिछले कुछ वर्षों में कैसे हो गया ?
उन्हें यह भी लगता है कि उन्होंने तो दशकों तक ऐसा नहीं होने दिया, भले ही इसके लिए 1953 में संविधान की मूल प्रति में धर्म निरपेक्ष राष्ट्र शब्द जोड़ना पड़े ।
उन्हें लगता है कि हमने तो हिन्दू और हिन्दुत्व का फातेहा पढ़ने में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ी थी । यह कौन आया कि हमने जो जो छद्मवाद के पर्वत तले छिपाया, वह हिन्दुत्व के महासागर का रूप लेकर उमड़ आया ? न केवल उमड़ा अपितु उस छद्मवादिता की कब्र भी पूरी तरह खोद डाली ।
भारत का विकास आज बड़ी तेजी से
अनेक क्षेत्रों में तेजगति से हो रहा है ।
गौर से देखिए 78 साल की आजादी देश की "विरासत" को भी पहली बार देश के "विकास" के साथ जोड़ा गया है । यानि पिछले एक दशक से कोरे विकास का थोथा नारा नहीं दिया गया । विरासत और विकास को एक साथ आगे बढ़ाया गया। विरासत को जागृत करने का परिणाम है कि देश आज समुद्र की तरह अपने आस्था केन्द्रों की ओर उमड़ रहा है।
ध्यान से देखिए, देशवासी अब ताजमहल, कुतुबमीनार या चारमीनार देखने नहीं जा रहे । करोड़ों लोग मौका निकालकर तीर्थों की ओर दौड़ रहे हैं । 55 करोड़ देशवासी यदि अपने काम-काज से अवकाश लेकर कुंभ नहाने जा चुके हैं तो संभलिए और देशवासियों के प्रवाह की स्पीड नापिए । सचमुच समझने का यही समय है, सही समय है।
काश ! महात्मा गांधी ने जिस दिन मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान को स्वीकार कर लिया था उसी दिन हिन्दू राष्ट्र भारतवर्ष को भी स्वीकार कर लेते ? काश पंडित नेहरू ने भी उसी दिन हिन्दू राष्ट्र के सिद्धांत को स्वीकार कर भारत का संविधान तैयार कराया होता ? यकीन मानिए भारत में हिन्दू मुस्लिम की कोई समस्या ही पैदा न होती । उस वक्त जिन्हें हिन्दू राष्ट्र में रहने में परेशानी होती, उन्हें साथ साथ इस्लामिक पाकिस्तान में डिपोर्ट कर दिया जाता।
स्वाधीन भारत में हिन्दू मुस्लिम फसाद की
बुनियाद 100% गलत बंटवारे ने रखी । देश को आजादी दिलाने में गांधीजी और कांग्रेस का बहुत बड़ा योगदान है। अफसोस कि 1947 में जब सदियों की दासता का अंत हुआ तब द्विराष्ट्र सिद्धांत स्वीकार करते हुए इस्लामिक राष्ट्र बनाम धर्म-निरपेक्ष राष्ट्र का जहर बो दिया गया । वह माहौल पैदा किया कि देश की एक बहुत बड़ी जमात आज गांधी नेहरू से घोर नफरत करने लगी है।
अभी तक तो तोड़ा और जलाया गया था । अब शुरू हुआ है विरासत की पुनर्स्थापना का दौर । निःसंदेह विरासत को जीवंत कर सारी दुनिया को आकर्षित करने का अवसर आजादी के आठवें दशक में अब जाकर मिला है । न तो आपे पीटिये और न ही सिर धुनिये । विरासत और विकास अब एक साथ चलेंगे ।
https://youtube.com/watch?v=8dOacE1U1J4&si=bOVuGm6dDIbrX8ul
अयोध्या मथुरा काशी ही नहीं संभल के सवाल भी उठेंगे और भोजवासा की परतें भी खुलेंगी । सत्य सामने आएगा छद्मवाद मरेगा । राजनीति कोई जीवंत विषय नहीं, मरण धर्मा होती है । जीवंत है विरासत और आध्यात्मिक दर्शन । दोस्तों सच मानिए, समय करवट बदल चुका है । विरासत और विकास साथ साथ चलेंगे, चल भी रहे हैं । बहुत देर से ही सही देश जागा है, हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद की विचारधारा जीवंत हो चली है
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