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तलवे चाटना: एक अद्भुत कला या खेल व्यवस्था पर कलंक

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"तलवे चाटना: एक अद्भुत कला या खेल व्यवस्था पर कलंक?" ✍️ लेखक अज्ञात भारत में खेलों की दुनिया दिन-ब-दिन आगे बढ़ रही है। एथलीट्स अंतरराष्ट्रीय पदक ला रहे हैं, देश का नाम रोशन कर रहे हैं, लेकिन इसके पीछे एक ऐसा काला सच छिपा है, जिस पर आज भी चर्चा करना एक ‘जोखिम’ जैसा लगता है। हम बात कर रहे हैं – ‘तलवे चाटने’ की संस्कृति की, जिसे आप चाहें तो "Yes Man स्पोर्ट्स स्किल" कह सकते हैं। --- 🎭 तलवे चाटना: एक कला, एक रणनीति, एक अनकहा सत्य यह कहना गलत नहीं होगा कि आजकल कई जगहों पर खेल कौशल से ज़्यादा संबंध कौशल मायने रखने लगा है। मैदान में कड़ी मेहनत करने वाले खिलाड़ियों को किनारे किया जाता है। जबकि 'सर, नमस्ते' और 'सब बढ़िया है सर' कहने वाले चेहरों को मंच, मीडिया और मैडल मिल जाते हैं। एक नया वर्ग बन गया है, जो खेल का अभ्यास नहीं करता, बल्कि "संबंधों की गर्मी" से पसीना बहाता है। इसे देखकर ऐसा लगता है कि जैसे ‘तलवे चाटना’ एक अनौपचारिक खेल इवेंट है—जिसका अभी तक बस मंत्रालय की सूची में नाम नहीं जुड़ा। --- 📉 खिलाड़ियों की असली चुनौती: विरोध नही...

पुष्पेंद्र गुर्जर: राजस्थान में किक बॉक्सिंग आंदोलन के अग्रदूत

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पुष्पेंद्र गुर्जर: राजस्थान किक-बॉक्सिंग के प्रेरणादायक अगुवा परिचय राजस्थान में किक-बॉक्सिंग के संगठित और सशक्त विकास में अग्रणी भूमिका निभाने वालों में श्री पुष्पेंद्र गुर्जर का नाम अत्यंत सम्मान के साथ लिया जाता है। वे राजस्थान किक-बॉक्सिंग संघ के महासचिव और WAKO India Kickboxing Federation के राष्ट्रीय संयुक्त सचिव हैं। एक समर्पित खिलाड़ी, प्रशिक्षक और तकनीकी अधिकारी के रूप में उन्होंने इस खेल को जमीनी स्तर से अंतरराष्ट्रीय मंच तक पहुँचाने में उल्लेखनीय योगदान दिया है। 🏅 खिलाड़ी से तकनीकी प्रतिनिधि तक की यात्रा भरतपुर जिले के बयाना (भीमनगर) निवासी पुष्पेंद्र गुर्जर ने किक-बॉक्सिंग में अपने करियर की शुरुआत एक कुशल खिलाड़ी के रूप में की। 2015 में आयोजित एशियन किक-बॉक्सिंग चैंपियनशिप (एशिया स्तरीय प्रतियोगिता) में उन्होंने ब्रॉन्ज मेडल जीतकर भारत के लिए गौरव बढ़ाया। 2022 में वे एक बार फिर एशियन चैंपियनशिप में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए प्रतिभागी के रूप में शामिल हुए। 🛡️ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तकनीकी प्रतिनिधित्व श्री पुष्पेंद्र गुर्जर को WAKO (World Association of Kickboxing Organ...

गली-गली घूमते विश्वविजेता जब खेल सर्टिफिकेट से चलता है”

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🥋🎭 गली-गली घूमते “चैंपियन” और खेल का शव! For more YouTube "<h2>तथाकथित विश्वविजेता: मार्शल आर्ट में दिखावे का खेल और समाज की चुप्पी</h2> <p><em>🥋 गली-गली 'विश्वविजेता' घूम रहे हैं – लेकिन जीत कहां है?</em></p> <p>आजकल हर मोहल्ले में कुछ ऐसे "मार्शल आर्ट विश्व चैंपियन" मिल जाते हैं, जिनके गले में 4 मेडल, हाथ में 5 सर्टिफिकेट और कैमरे में विधायक जी के साथ फोटो होती है।</p> <hr/> <h3>🥇 दिखावे का दौर: सर्टिफिकेट से 'सम्मान' की भूख</h3> <p>ये तथाकथित चैंपियन हर हफ्ते एक नई प्रतियोगिता में भाग लेते हैं — जिनमें से आधी बिना किसी मान्यता के होती हैं। फिर वो नेता जी के पास जाकर फोटो खिंचवाते हैं, और फेसबुक पर पोस्ट डालते हैं:</p> <blockquote>"विश्व विजेता बनने पर विधायक महोदय से आशीर्वाद प्राप्त हुआ 🙏"</blockquote> <h3>🤔 असली सवाल: क्या यह खेल को शर्मसार नहीं कर रहा?</h3> <p>मार्शल आर्ट अनुशासन, विनम्रता और तप का प्रतीक है। लेकिन ...

गुंजन सोढा का राष्ट्रीय किक बॉक्सिंग प्रतियोगिता हेतु चयन

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गुंजन सोढा का राष्ट्रीय किक बॉक्सिंग प्रतियोगिता हेतु चयन जिले का करेंगी प्रतिनिधित्व रायपुर, छत्तीसगढ़ में भीनमाल (जालोर): जालोर जिले की होनहार खिलाड़ी गुंजन सोढा का चयन आगामी राष्ट्रीय किक बॉक्सिंग प्रतियोगिता के लिए हुआ है, जो रायपुर (छत्तीसगढ़) में आयोजित की जाएगी। गुंजन इस प्रतिष्ठित प्रतियोगिता में Above 21 आयु वर्ग के 56 किलो भार वर्ग के किक लाइट इवेंट में जालोर जिले का प्रतिनिधित्व करेंगी। इस संबंध में जानकारी जिला किक बॉक्सिंग संघ के अध्यक्ष श्री वचनाराम राजपुरोहित ने दी। उन्होंने बताया कि गुंजन ने अपने निरंतर अभ्यास, अनुशासन और उत्कृष्ट प्रदर्शन के दम पर यह मुकाम हासिल किया है। उनके चयन से जिले के खेल जगत में उत्साह की लहर दौड़ गई है और यह जिले के युवाओं के लिए एक प्रेरणादायक क्षण है। गुंजन सोढा पूर्व में भी राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं में शानदार प्रदर्शन कर चुकी हैं और अब राष्ट्रीय स्तर पर जिले का नाम रोशन करने को तत्पर हैं। आज गुंजन राष्ट्रीय प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए रायपुर रवाना हुईं, जहां पर उनका आत्मविश्वास, खेल भावना और समर्पण जिले को गौरवान्वित करने क...

अब भी समय है। बेटी को जिम भेजो, डांस सिखाओ—लेकिन पहले उसे संस्कारों का सुरक्षा कवच दो। वरना अगली बार जब कोई MMS वायरल होगा, तो उसमें आपकी बेटी नहीं, आपकी सोच की नंगी सच्चाई दिखेगी।

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सुबह उठते ही बेटी तैयार होती है—जिम बैग, ब्रांडेड लेगिंग्स, एयरपॉड्स और चेहरे पर अजीब सा “कॉन्फिडेंस”। माँ सोचती है—बेटी कितनी जागरूक है, हेल्थ को लेकर कितनी गंभीर है। बाप सोचता है—आजकल की लड़कियाँ भी लड़कों से कम नहीं। लेकिन कोई ये नहीं सोचता कि बेटी जा कहाँ रही है, और वहाँ हो क्या रहा है। जिम के नाम पर दरअसल वो जा रही है नेहरू पार्क में खुले “प्रीमियम प्राइवेट स्पेस” में, जहाँ ट्रेनर सिर्फ एक्सरसाइज़ नहीं करवा रहा—नीतियों का अभ्यास करवा रहा है। पैर पकड़े हुए वो सिर्फ शरीर नहीं मोड़ रहा, सोच और संस्कार भी धीरे-धीरे मोड़ रहा है। और जब वीडियो वायरल होता है, तब माता-पिता के मुंह से निकलता है—"हमें क्या पता था जी, हमें तो लगा जिम जा रही है।" यही तो सबसे बड़ा अपराध है—जानबूझकर अनजान बने रहना। माँ, जो दिनभर फेसबुक पर संस्कार वाली पोस्टें शेयर करती है, और बाप, जो मोहल्ले में आदर्श पुरुष बना घूमता है—दोनों को तब भी शक नहीं होता, जब बेटी रोजाना जिम से “फिटनेस” के साथ थोड़ी “बोल्डनेस” भी लेकर लौटती है। लेकिन जब वही लड़की, जिहादी मानसिकता वाले किसी लड़के के साथ तस्वीरों में...

🛑 क्या कूड़ो वाकई खेल है या केवल दिखावा?

🛑 क्या कूड़ो वाकई खेल है या केवल दिखावा? कूड़ो को आधुनिक मार्शल आर्ट कहा जाता है, लेकिन इसके पीछे की हकीकत कुछ और ही है... 🔸 जापान में दो गुटों में बंटा हुआ खेल – असली संगठन कौन सा है, कोई नहीं जानता। 🔸 खिलाड़ी बनते हैं राजनीति का शिकार – मेहनत से ज़्यादा चालाकी चलती है। 🔸 भारत में न कोई ठोस मान्यता, न कोई स्थायी भविष्य। 🔸 ट्रेंनिंग महंगी, लेकिन खिलाड़ी की ज़िंदगी सस्ती। 🔸 अनुशासन की आड़ में मानसिक दमन – कोई सुनवाई नहीं। 🔥 सवाल ये है: क्या हम अपने बच्चों को ऐसे अनिश्चित खेल में भेजना चाहेंगे? 📢 अब वक्त है कूड़ो की सच्चाई सामने लाने का। खेल वही जो भविष्य दे, न कि भ्रम। #KudoTruth #FakeMartialArt #KudoControversy #MartialArtsReality #खेल_या_धोखा #SportOrShowoff #कूड़ो_की_हकीकत #MartialArtReform #YouthExploitation

"जब पुण्य पाप की परछाई में पनपता है"

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"जब पुण्य पाप की परछाई में पनपता है" आज का समय भ्रम और छवियों का समय है। एक ऐसा दौर, जहां अच्छाई का चेहरा सजाया जाता है, और सच्चाई को दबाया जाता है। समाज में जो व्यक्ति जनसेवा का प्रतीक बनकर उभरता है, वह अक्सर हमारी भावनाओं की उस ज़मीन पर खड़ा होता है, जिसे हम बिना सवाल पूछे ही पवित्र मान लेते हैं। पर क्या कभी आपने उस सिंहासन को गौर से देखा है, जिस पर यह मसीहा बैठा है? वह सिंहासन अक्सर लाचारों की खामोशियों, शोषितों की आहों और अनगिनत कुर्बानियों की नींव पर खड़ा होता है। पुण्य का कार्य दिखाने के लिए, पाप की चुप्पी को साध लिया जाता है। मीडिया में तस्वीरें मुस्कुराती हैं, पर ज़मीर कहीं पीछे दम तोड़ रहा होता है। समाज में ‘मसीहा’ बनना अब सेवा नहीं, एक रणनीति बन गया है। प्रचार, सत्ता और छवि निर्माण का मिश्रण ही आजकल किसी को महान बना देता है। मगर इन सबके पीछे एक अंधकार है — जिसे देखना जरूरी है। हमें ज़रूरत है इस नकाब को हटाने की। हमें चाहिए कि हम सिर्फ कार्य नहीं, उसकी नीयत को भी परखें। क्योंकि अगर पुण्य, पाप की परछाई में पनपने लगे — तो सच को उजागर करना हमारा कर्तव्य बन ज...