अब भी समय है। बेटी को जिम भेजो, डांस सिखाओ—लेकिन पहले उसे संस्कारों का सुरक्षा कवच दो। वरना अगली बार जब कोई MMS वायरल होगा, तो उसमें आपकी बेटी नहीं, आपकी सोच की नंगी सच्चाई दिखेगी।
सुबह उठते ही बेटी तैयार होती है—जिम बैग, ब्रांडेड लेगिंग्स, एयरपॉड्स और चेहरे पर अजीब सा “कॉन्फिडेंस”। माँ सोचती है—बेटी कितनी जागरूक है, हेल्थ को लेकर कितनी गंभीर है। बाप सोचता है—आजकल की लड़कियाँ भी लड़कों से कम नहीं। लेकिन कोई ये नहीं सोचता कि बेटी जा कहाँ रही है, और वहाँ हो क्या रहा है। जिम के नाम पर दरअसल वो जा रही है नेहरू पार्क में खुले “प्रीमियम प्राइवेट स्पेस” में, जहाँ ट्रेनर सिर्फ एक्सरसाइज़ नहीं करवा रहा—नीतियों का अभ्यास करवा रहा है। पैर पकड़े हुए वो सिर्फ शरीर नहीं मोड़ रहा, सोच और संस्कार भी धीरे-धीरे मोड़ रहा है। और जब वीडियो वायरल होता है, तब माता-पिता के मुंह से निकलता है—"हमें क्या पता था जी, हमें तो लगा जिम जा रही है।" यही तो सबसे बड़ा अपराध है—जानबूझकर अनजान बने रहना। माँ, जो दिनभर फेसबुक पर संस्कार वाली पोस्टें शेयर करती है, और बाप, जो मोहल्ले में आदर्श पुरुष बना घूमता है—दोनों को तब भी शक नहीं होता, जब बेटी रोजाना जिम से “फिटनेस” के साथ थोड़ी “बोल्डनेस” भी लेकर लौटती है। लेकिन जब वही लड़की, जिहादी मानसिकता वाले किसी लड़के के साथ तस्वीरों में...